रक्षक (भाग : 20)
रक्षक भाग : 20
खण्ड तृतीय : संयुक्त रक्षक
रोशनी के तेज झमाके से कुछ पल के लिए सबकुछ दिखना बन्द हो गया था। जब वहां रोशनी हल्की कम हुई तो रक्षक एक अलग रूप में था, अपने से बिखरे हुए सातो भागो को जोड़कर रक्षक सम्पूर्ण हो चुका था।
उसके लम्बे नीले केश हवा में लहरा रहे थे। तन पर काली नीली पोशाक थी, जिसपर लाल खांचे की पट्टियां बनाई गई थी, उसके दाहिने हाथ मे एक नीले रंग की चमकती तलवार और दूसरे हाथ में अविनाशी चैन थी, उसके पीठ पर लबादा था, अब रक्षक सम्पूर्ण हो चुका था।
यूनिक उठकर खड़ा हो चुका था। उसके शरीर पर बने छिद्र के निशान भर चुके थे, संसार का सर्वोत्तम जहर भी उसे कोई नुकसान नही पहुँचा सका था।
जीवन और जैक महाभूत की तरफ बढ़ते है।
"अब ये युद्ध एक रक्षक और एक विनाशक के बीच है जीवन!" - जय, जीवन को सम्बोधित कर बोलता है।
"परन्तु ये धरती हमारी भी है जय! हम इसके लिए अवश्य लड़ेंगे।" - जैक बोला।
"और कोई भी काली शक्ति आकर हमे तंग करे, हर बार एक ही घटिया हरकत हमे पसन्द नही।" - जीवन बोला।
"शांत हो महान वीरो, जानते हैं तुम्हारे अंदर क्रोध बाहर से कूट कूट करके भरा हुआ है, पर यह युद्ध उसे ही लड़ने दो, रक्षक को आज खुद को साबित करना है।" - यूनिक बोला।
"क्या बोले? महान वीरो, टांग खीच रहे तुम हमारी!" - जैक और जीवन एक साथ बोले, फिर एक दूसरे की ओर देखकर मुस्कुराने लगे।
"यार कुछ देर के लिए इस महायुद्ध का आनंद उठाने दो।" - जॉर्ज बोला।
"मतलब हम मूक दर्शक बन जाएं? कदाचित ऐसा संभव नही।" - जीवन अपनी तलवार को मजबूती से पकड़ते हुए बोला।
"क्या तुम्हें रक्षक पर भरोसा नही है जीवन? याद रखो हम चारो के विचारों में मतभेद हो सकता है पर करते हम हमेशा एक ही है, हम अब भी वही करेंगे।" - जय, जीवन के कंधे पर हाथ रखकर बोला।
रक्षक अपने बाएं हाथ से चैन लहराते हुए, महाभूत की तरफ बढ़ता है, चैन कसकर जाकर महाभूत से लिपट जाती है, रक्षक चैन पकड़कर तीव्र गति से दौड़ते हुए उसके चारों तरफ लपेटने लगता है, इससे पहले महाभूत कुछ समझ पाता चैन बड़ी होते हुए उसके पूरे शरीर से लिपट जाती और कसकर जकड़ने लगती है।
रक्षक, महाभूत को कोई अन्य अवसर नही देना चाहता था, वह अपने दाएं हाथ से तलवार को लहराकर उसे हवा में छोड़ देता है, तलवार के नोक पर बिजलियों का समूह मंडराने लगता है, श्वेत नीले बादल बनने लगते हैं, नीचे की मिट्टी धूल बनकर उड़ने लगती है और उस तलवार के पास केंद्रित हो जाती है, ऐसा लग रहा था मानो जमीन और आसमान के बीच बस उस तलवार की दूरी है। रक्षक उड़कर उस तलवार को पकड़ता है उसकी आँखों मे बिजलिया दौड़ने लगती है, पैरों की तरफ धूल विशेष आकार में चढ़ने लगती है, रक्षक चैन से बंधे महाभूत पर तलवार से वार करता है, जिससे उसका हाथ कटकर अलग हो जाता है, दूसरा वार दूसरे हाथ पर करता है परवो कटा हुआ हाथ रक्षक पर जोरदार वार करता है जिससे रक्षक का ध्यान भंग हो जाता है, उसके हाथों की तलवार नीचे गिर जाती है, अगले ही पल महाभूत का कटा हाथ उसके शरीर से वापस जुड़ जाता है, चिंघाड़ मरते हुए महाभूत उस चैन को तोड़ देता है।
"तुमने अविनाशी चैन को तोड़ डाला ? पर कैसे? यह असम्भव है!" - रक्षक यह देखकर आश्चर्यचकित हो गया।
"जिसके पास मृत्यु पत्थर हो उसके लिए कुछ भी असम्भव नही है रक्षक!" - महाभूत गरजते हुए बोला।
"ये मृत्यु पत्थर का कुछ ज्यादा बखान नही कर रहा?" - यूनिक जीवन के पास बैठते हुए बोला।
"लगता तो मुझे भी ऐसा ही है, तुम्हे कुछ पता है इस पत्थर के बारे में!" - जीवन ने यूनिक से पूछा।
"वाह ये तो रक्षक के सम्पूर्ण होने से बड़ा चमत्कार हो गया, यूनिक और जीवन एक ही बात पर सहमत!" - जॉर्ज उनकी टांग खिंचाई करते हुए बोला।
"नही ऐसी बात नही है..!" - जीवन और यूनिक दोनो एक साथ बोले, यूनिक नीचे झुककर जीवन को देखा फिर सीधा हो गया, यूनिक की इस हरकत पर सब हँसने लगे, अर्थ अपने सैनिकों के साथ वहां से थोड़ी दूर खड़ा था।
"तुम तो अपनी सदियों की ताकत भूलकर, किसी बच्चे की तरह इस पत्थर का गुणगान करने लगे महाभूत!" - रक्षक ने महाभूत का दायां हाथ पकड़कर उसे जमीन पर पटकते हुए बोला।
"सदियों पुरानी ताक़त से तो तुम रूबरू हो चुके हो बच्चे! अब जरा इसकी ताक़त का भी स्वाद चख लो।" - महाभूत झट से उठकर खड़ा हुआ, अदृश्य होकर रक्षक के पीछे प्रकट हुआ और उसपर घुसा मारा।
पर बार बार एक ही चाल कामयाब होनी तय तो नही थी, रक्षक ने उसके हाथ को पकड़कर धोबिपछाड़ दे मारा, इसपर यूनिक बच्चो जैसे तालियां बजाने लगा, जीवन भी उसके साथ ताली बजाने लगा, बाकी सब भी यह देखकर बहुत खुश थे।
"क्यों? कहा गयी इस पत्थर की ताकत?" - गिरे हुए महाभूत के पेट पर खड़ा होकर बोला रक्षक।
महाभूत बस मुस्काया, जैसे अपने पेट पर खड़ा करवाना उसकी योजना हो, इससे पहले रक्षक कुछ समझ पाता महाभूत के सीने से निकले टेंटीकल्स उसके पैरों को जकड़ने लगते हैं, रक्षक के कई कोशिशों के बावजूद वह इस बंधन से आजाद नही हो पाता।
महाभूत अपने पेट पर बंधे रक्षक को जोरदार पंच मारता है, जिससे उसकी चीख निकल जाती है, रक्षक को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि ये टेंटीकल्स बस उसे रोक रहे, महाभूत ने जब घुसा मारा तो उसका मुक्का इन टेंटीकल्स पर लगा ही नही, वह अपनी बी पॉवर को ध्यान करता है और उसका पूरा शरीर दहकने लगता है, लेकिन उन टेंटीकल्स पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ता, रक्षक खुद को संयमित करने का प्रयास करता है और वह गायब होने लगता है, उसके गायब होते ही उसकी तलवार, उन टेंटीकल्स पर प्रहार करती है पर कोई फायदा नही होता, रक्षक अपनी तलवार लिए प्रकट होता है।
"तुम इन टेंटीकल्स के बंधन से कभी आजाद नही हो सकते! कैसे हुआ ये?" - महाभूत हैरानी से बोला।
"अदृश्य होने पर दृश्य चीजे मुझे नही रोक सकती महाभूत!" - रक्षक ने मुस्कुराते हुए कहा।
"लगता है अब तुम्हे मृत्यु पत्थर की असली ताकत दिखाना पड़ेगा।" - कहते हुए महाभूत अपने दाएं हाथ मे मृत्यु पत्थर को पकड़कर रक्षक पर हमला करता है, रक्षक बचने की कोशिश करता है पर बच नही पाता, रक्षक को ऐसा लगता है जैसे सैकड़ो ग्रह एक साथ उसके ऊपर मार दिए गए हो, वह हवा में उड़ता हुआ दूर जा गिरा। रक्षक उठने की कोशिश कर रहा था तभी महाभूत जाकर लगातार उसपर घुसे बरसाने लगता है, सबकी आंखे फ़टी की फटी रह जाती कि रक्षक सम्पूर्ण होने के बाद भी महाभूत के सामने ठहर नही पा रहा था। महाभूत लगातार घुसे बरसाए जा रहा था तभी उसका हाथ अचानक हवा में रुक जाता है।
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तमसा, तमस को जाने से रोकती है, तमस उसे पूरी बात बताने लगता है।
"यह सब हमारी ही चाल थी, उसके जन्म लेते ही हमे पता चल चुका था कि वह एक लहू होगा।" - तमस, तमसा को बता रहा था।
"जब तुम्हे पता था यह ग्रह उजाले का केंद्र बनेगा तो मुझे बीच मे क्यों झोंका?" - तमसा अब भी भीषण क्रोध में थी।
"हर बात मैं तुमसे पूछकर या बताकर नही कर सकता बहन!" - तमस प्यार से बोला।
"लेकिन हर बार एक औरत को ही दुविधा में क्यों डाला जाता है? चाहे युद्ध कोई भी जीते मैं तो हार ही जाऊंगी।" - तमसा निराश स्वर में बोली।
तमस अपनी बहन को एकटक देखता रह गया, कही यह उसके रास्ते में आ गयी तो?
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"ओये दरवाजा खोलो कुम्भकर्ण के पुनर्जन्म!" - राज के कमरे के बाहर से जोर जोर की आवाजें आ रही थी।
"उम्मम! अभी आता हूँ।" - राज बोला।
"तुमने बताया क्यों नही कि यहाँ तुम्हारा होस्टल है?" - रीमा राज का कान पकड़कर बोली।
"तुम्हे किसने बताया?" - राज फ़टी आँखों से देखते हुए बोला।
"पता चल ही जाता है।" - रीमा कान को और ऐंठते हुए बोली।
"हाँ तो एक साल से यहां पढ़ाई कर रहा हूँ, सड़क पर तो रहूंगा नही!" - मुँह बनाते हुए राज बोला ।
"हा! हा! कोई अच्छा बहाना होता है कभी तुम्हारे पास?" - रीमा बोली।
"होस्टल चला जाता तो सुबह सुबह ये प्यारी सी डांट कहा सुनने को मिलती!" राज मुस्कुराकर बोला।
"बस बस अब मस्का नही लगाना, चलो नाश्ता करो मेरा एडमिशन भी कराना है।" - रीमा बोली।
राज उसे बस मुस्कुराकर देख रहा था।
क्रमशः…………...
Niraj Pandey
08-Oct-2021 04:25 PM
वाह लाजवाब
Reply
मनोज कुमार "MJ"
11-Oct-2021 07:02 AM
Thanks
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Shalini Sharma
01-Oct-2021 01:50 PM
Nice
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मनोज कुमार "MJ"
11-Oct-2021 07:02 AM
Shukriya
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